Premanand Ji Maharaj Satsang
Premanand Ji Maharaj Satsangसंत प्रेमानंद महाराज का संदेश: जब जीवन में समस्याएं और सवाल उठते हैं, तब संतों की शिक्षाएं हमें नई दिशा प्रदान करती हैं। प्रेमानंद महाराज का मानना है कि हर घटना का मूल कारण केवल भगवान है। विज्ञान घटनाओं को समझने का प्रयास करता है, लेकिन वह केवल सतही स्तर पर होता है। अध्यात्म न केवल क्रियाओं को देखता है, बल्कि उनके पीछे के कारणों को भी समझता है। यही कारण है कि संतों के विचार हमें न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि जीवन जीने का सही तरीका भी सिखाते हैं।
ईश्वर का हाथ हर घटना में
महाराज का कहना है कि 'हमने चंद्रमा पर पहुंचने का साहस किया, लेकिन क्या कभी सोचा कि चंद्रमा की रचना किसने की?' इसका उत्तर स्पष्ट है कि यह सब भगवान की कृपा से संभव हुआ है। मनुष्य की खोजों और साहस के पीछे वही शक्ति काम कर रही है। चाहे मृत्यु का भय हो या असंभव को संभव बनाने की इच्छा, इन सबका मूल ईश्वर ही है।
सच्चे संत का स्वरूप
साधना का असली अर्थ
कई लोग मानते हैं कि गुफाओं में तप करना ही कठिन साधना है। लेकिन महाराज का कहना है कि असली साधना तो परिवार और समाज के बीच रहकर होती है। गुफा में व्यसनों से बचना आसान है, लेकिन समाज में जिम्मेदारियों और रिश्तों के बीच अपने मन को नियंत्रित करना असली तप है। यही जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा है। यदि कोई इसमें सफल हो जाता है, तो भगवान की प्राप्ति निश्चित है।
सेवा और कर्तव्य का महत्व
महाराज बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि बिना सेवा भाव और कर्तव्य पालन के अध्यात्म अधूरा है। शास्त्रों को वे दवा की दुकान मानते हैं। हर समस्या का समाधान उनमें है, लेकिन कौन-सी दवा किसे दी जाए, यह संत ही तय करते हैं। यह तभी संभव है जब हम अपने कर्तव्यों में दृढ़ रहें। सच्चाई यह है कि कर्तव्य निभाना हमेशा कठिन होता है। सुख-सुविधा में कभी भी वास्तविक कर्तव्य पूरा नहीं किया जा सकता।
भोग और भक्ति का अंतर
मनुष्य का मन तब तक अशांत रहता है जब तक वह भोग की ओर भागता है। भोग क्षणिक सुख देते हैं, लेकिन बेचैनी भी बढ़ाते हैं। इसके विपरीत, जब मन भगवान के भजन और नाम स्मरण में लगा रहता है, तो वह स्थिर और शांत हो जाता है। प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि मन को विश्राम केवल भगवान के चिंतन से ही मिलेगा।
नाम जप का महत्व
सदाचार और पाप का प्रभाव
मनुष्य के आचरण का असर उसके पूरे जीवन पर पड़ता है। पाप आचरण से मन भारी और दुखी होता है, जबकि सदाचार मन को हल्का और प्रसन्न करता है। महाराज कहते हैं कि जब तक मन भोग में उलझा रहेगा, तब तक वह भटकेगा। लेकिन जैसे ही मन ईश्वर में लग जाता है, जीवन शांत और सुखमय हो जाता है।
गृहस्थ जीवन में तपस्या
कई लोग गृहस्थ जीवन को अध्यात्म की राह में बाधा मानते हैं। लेकिन प्रेमानंद महाराज का दृष्टिकोण अलग है। वे कहते हैं कि गृहस्थ जीवन में रहकर ही सबसे बड़ी साधना होती है। रिश्तों, जिम्मेदारियों और मोह-माया के बीच मन को भगवान में स्थिर रखना ही असली तपस्या है। इसमें सफलता मिलना ही भगवान की प्राप्ति का मार्ग खोलता है।
जीवन का सार्थकता
जीवन की हर उलझन का हल भगवान के चरणों में मन को लगाकर ही मिलता है। जब इंसान अपने कर्तव्यों का पालन करता है और साथ ही नाम जप करता है, तब उसका जीवन सच्चे अर्थों में प्रसन्न और सार्थक बन जाता है। यही असली साधना है और यही जीवन का लक्ष्य है।
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